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श्री गणेश का आशीर्वाद आप और आपके परिवार पर सदैव बना रहे 🙏
May the blessings of Shree Ganesha be with you and your family forever 🙏
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गणपति बप्पा मोरया 🙏♥️
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• 7 मारुत : और उनके 7-7 मरुदगण तथा उनके आंदोलन क्षेत्र :
1. आवाह, ब्रह्मलोक
2. प्रवाह, इंद्रलोक
3. संवाद, अंतरिक्ष
4. उदवा, पृथ्वी के पूर्व
5. विवाह, भुलोक के पश्चिम में
6. परिवाह, भुलोक के उत्तर में
7. परवाह, पृथ्वी के दक्षिण में
इस प्रकार कुल 49 प्रमुख मरुत हैं। कुल संख्या को कभी-कभी 180 कही जाती है। वे अंतरिक्ष में और फूलों में रहते हैं। वे अपने देवता के लिए देवों के रूप में विचरण करते हैं
• 220 महाराजिक :
एक प्रकार के देवता है जिनकी संख्या 226 या 236 और कहीं पर 4000 भी बताई जाती है। महाराजिकाओं के संदर्भ में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
• 9 ग्रह देवता :
1. सूर्यदेव
2. सोमदेव (चंद्र देव)
3. मंगल / कुज
4. बुध
5. गुरु / बृहस्पति
6. शुक्र
7. शनिदेव
8. राहु
9. केतु
• मुख्य श्रेणियों के अतिरिक्त अन्य देवता :
गणाधीपति गणेश, कार्तिकेय, धर्मराज, चित्रगुप्त, आर्यमा, हनुमान, भैरव, वन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, यम, शनि, सोम, रिभुः, द्युः सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्ना, वनस्पति, पर्वत, धेनु, सनकादि गरुड़, अनंत शेष, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पिंगला, जय, विजय एवं बहुत सारे...
• मुख्य श्रेणियों के अतिरिक्त अन्य देवियाँ :
भैरवी, यामी, पृथ्वी, पूषा, आप, सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु, त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शची, दिति, अदिति एवं बहुत सारी...
• स्थानीय देवता :
1. द्यु-स्थानीयः : आकाश और स्वर्ग :
सूर्य (प्रमुख), वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपानपत, सविता, त्रिपा, विवस्ववत, आदित्यगण, अश्विनीकुमार आदि।
2. मध्य-स्थानीय : अंतरिक्ष :
पर्जन्य, वायु (प्रमुख), इंद्र, मारुत, रुद्र, मातरिश्वन, त्रिप्रपत्य, अज एकपाद, आप, अहितबुधन्य आदि।
3 . पृथ्वी-स्थानीय : पृथ्वी पर :
पृथ्वी, उषा, अग्नि (प्रमुख), सोम, बृहस्पति, नदियाँ आदि।
4. पाताल-लोकीय :
शेष नाग और वासुकी आदि।
5. पितृ लोकीय :
समस्त मानवता के नौ दिव्य पित्रो को अग्रिसवत्ता, बरहीशद अजयप, सोमेप, रश्मिपा, उपदूत, अयंतुन, श्राद्धभुक और नंदीमुख के रूप में जाना जाता है। समस्त पित्रुओं के देवता आर्यमा हैं।
6. नक्षत्र के अधिपति :
- चैत्र मास में धात,
- वैशाख में आर्यमा,
- ज्येष्ठ में मित्र,
- आषाढ़ में वरुण,
- श्रावण में इंद्र,
- भाद्रपद में विवस्वान,
- अश्विन में पूष,
- कार्तिक में पर्जन्या,
- मार्गशीर्ष में अंशु,
- पौष में भाग,
- माघ में त्वष्टा और
- फाल्गुन में विष्णु है।
सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हुए इनको याद करना चाहिए।
7. दस दिशाओं के 10 दिग्पाल :
- ऊपर के ब्रह्मा,
- उत्तर के शिव और ईश,
- पूर्व के इंद्र,
- अज्ञेय की अग्नि या वाहरी,
- दक्षिण के यम,
- नैरुत्य की नारुति,
- पश्चिम के वरुण,
- वायव्य के वायु और मारुत,
- उत्तर के कुबेर और
- नीचे के अनंत शेष।
इनके अतिरिक्त,
1. ऋग्वेद के केवल दो सूक्तों (3.9.9 और 10.52.6) में ही 3339 देवताओं का उल्लेख किया गया है।
2. मत्स्य पुराण में कई सौ देवियों की सूची भी है।
3. केवल अप्सराओं की संख्या भी 60 करोड़ को पार करती है, जो की समुद्र मंथन से निकलकर गंधर्व-लोक को चली गई थी।
4. हमने अभी यक्ष, किन्नर, गंधर्व, किमपुरूस आदि असंख्य अर्ध-देवताओं की गणना नहि की है, जो की सभी स्वर्गीय ग्रहों के निवासी हैं और देवताओं की तुलना में कम शक्तिशाली हैं परंतु पृथ्वी वासियों की तुलना में अधिक।
तो क्या मिला आपको हमारे लोकप्रिय प्रश्न का उत्तर,
कितने देवी-देवता है? 33 कोटि? या 33 करोड़?
ना तो 33 कोटि, ना ही 33 करोड़।
उत्तर है कि, वे बदलते रहते हैं। जैसे पृथ्वी पर मनुष्यों की कोई स्थिर संख्या नहीं है, वैसे ही स्वर्ग में देवताओं की भी कोई स्थिर संख्या नहीं है।
मनुष्य की तरह ही वे भी जन्म लेते हैं, उनका जीवन काल भी समाप्त होता है और फिर एक और बार नए देवताओं के साथ ये चक्र फिरसे चलने लगता है।
• क्रेडिट :
सनातन संस्कृति का मूलज्ञान
by प्रतीक प्रजापति
(2/2) @Hindu
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तो आइए, अब जानते है कि,
कितने देवी देवता है ? 33 कोटि या 33 करोड़ ?
चलिए, गणना करें।
• त्रिदेव : ब्रह्मा, विष्णु, महेश
• त्रिदेवी : सरस्वती, लक्ष्मी, काली
इनमे से भी भगवान विष्णु के असीमित रूपों में से कुछ रूप हैं,
• 3 विष्णु पुरुष :
कारणोदक्षायी विष्णु
गर्भोदक्षायी विष्णु
क्षीरोदक्षायी विष्णु
• 24 विष्णुरूप :
वासुदेव, केशव, नारायण, माधव, पुरुषोत्तम, अधोक्षजा, संकर्षण, गोविंदा, विष्णु, मधुसूदन, अच्युत, उपेंद्र, प्रद्युम्न, त्रिविक्रम, नरसिंह, जनार्दन, वामन, श्रीधर, अनिरुद्ध, हृषिकेश, पद्मनाभ, दामोदर, हरि और कृष्ण।
हालांकि ये रूप आध्यात्मिक दुनिया तथा हमारे ब्रह्मांड से बाहर स्थित हैं, इसलिए हम इनकी गणना देवताओं में नहीं करेंगे।
इनके उपरांत,
त्रिदेवियों के असंख्य रूपों में से, कुछ हैं ...
• 12 सरस्वती :
महाविद्या, महावाणी,भारती, सरस्वती, ब्राह्मी, महाधेनु, वेदगर्भ, ईश्वरी, महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती।
• 8 लक्ष्मी :
आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संताना लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी।
• 12 गौरी :
उमा, पार्वती, ललिता, श्रोत्तमा, कृष्णा, हेमवंती, रंभा, सावित्री, श्रीखंड, तोता और त्रिपुरा।
• साथ ही 200+ क्षेत्रीय देवीयां जिनकी आज भी पूरे भारत में ग्रामीण तथा अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में पूजा की जाती है।
अभी, आगे बढ़ते है,
आदित्य-विश्व-वसवस् तुषिताभास्वरानिलाः महाराजिक-साध्याश् च रुद्राश् च गणदेवताः ॥10॥ - नामलिङ्गानुशासनम्
33 प्रमुख देवता +
36 तुशिता +
10 विश्वदेव +
12 साध्यदेव +
64 आभास्वर +
49 मारुत +
220 महाराजिक = 424 देवता और देवगणः
• गण : सेना, सेवक, घनिष्ट सहयोगी या विशेष देवता की सेवा करने वाला देवताओं का व्यक्तिगत सेवक समुदाय।
जैसे कि भगवान शिव के गणों को शिवगण कहा जाता है। इन्द्र के गण को इन्द्रगण कहते हैं। इसी प्रकार अधिक रूप से प्रमुख देवताओं में ऐसे गण समुदाय हैं और वे असंख्य हैं।
तथा, जैसे सभी देवों के देव देवाधिदेव महादेव हैं, वैसे ही सभी गणों के नेता गणाधिपति, गणपति गणेश हैं। उनकी पूजा करना अर्थात सभी गणों की पूजा करना।
इनके उपरांत, वेदों में भी 10 आंगिरसदेव एवं 9 प्रकार के देवगण का भी उल्लेख है।
• 33 प्रमुख देवता :
12 आदित्य + 8 वसु + 11 रुद्र + 1 इंद्र + 1 प्रजापति (कुछ शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर 2 अश्विनी कुमार स्थित होते हैं।)
• 12 आदित्य :
1. अंशुमान, 2. आर्यमन, 3. इंद्र, 4. त्वष्टा, 5. धातु, 6. परजंन्य, 7. पूषा, 8. भगा, 9. मित्रा, 10. वरुण, 11. विवस्वान और 12. विष्णु।
• 8 वसु :
1. आप, 2. ध्रुव, 3. सोम, 4. धार, 5. अनिल, 6. अनल, 7. प्रत्यूष और 8. प्रभास।
• 11 रुद्र :
1. शंभू, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थानु, 5. भरगा, 6. भाव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्वाः और 11. कपाली।
ये 11 रुद्र, यक्षों और दस्युजन के भी देवता हैं तथा कल्प बदलने पर रुद्र और उनके नाम भी बदल जाते हैं।
- उदहारणः
ये अन्य कल्प के अन्य शास्त्रों में उल्लिखित अन्य रुद्रों के नाम हैं। 1. मनु, 2. मन्यु, 3. शिव, 4. महत, 5. ऋतुध्वज, 6. महिनस, 7. उमतेरस, 8. काल, 9. वामदेव, 10. भव तथा 11. धृत-ध्वज।
• 2 अश्विनी कुमार :
1. नस्तास्या तथा 2. दस्ता।
जो की आयुर्वेद के आदि आचार्य हैं तथा सूर्य देव के पुत्र हैं।
• 36 तुषित :
36 तुषित देवताओं का वो समूह है जो विभिन्न मन्वंतर में जन्म लेते हैं। उनका एक भिन्न स्वर्ग है तथा उनके नाम पर एक भिन्न ब्रह्मांड भी है।
• 10 विश्वदेव :
1. वासु 2. सत्य 3. क्रतु 4. दक्ष, 5. कला 6. काम 7. धृति 8. कुरु 9. पुरुरवा 10. मद्राव, तथा बाद में 2 और जोड़े गए 11. रोचक या लोचन, 12. ध्वनि धुरी
इनमे से पाँच विश्वदेव एक बार ऋषि विश्वामित्र के श्राप के कारण द्रौपदी के पाँच पुत्र पाँच उपपांडव के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। रात में अश्वत्थामा द्वारा मारे जाने के बाद वे अपने मूल स्वरूप में पुनः आ गए थे।
• 12 साध्यदेव :
1. अनुमन्ता 2. प्राण 3. नर 4. वीर्य 5. यान 6. चिट्टी 7. हय 8. नय 9. हंसा 10. नारायणः 11. प्रभव और 12. विभुः
• 64 अभास्वर :
तमोलोक में ये 3 देवनिकाय हैं।
1. भावेश्वरः
2. महाभास्वर और
3. सत्यमहाभास्वर । अभास्वर देवता का काम भूतों, इन्द्रियों और बुद्धि को नियंत्रण में रखना हैं।
• 12 यमदेव :
यदु, ययाति, देव, ऋतु और प्रजापति आदि को यमदेव कहा जाता हैं।
• 49 मारुतगण :
मारुत देवताओं के सैनिक हैं। वेदों में इन्हें रुद्र और वृष्णि के पुत्र बताया गया है, जबकि पुराणों में इन्हें कश्यप और दिति के पुत्र बताया गया है। कल्पभेद।
(1/2) @Hindu
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How many gods and goddesses are there in Sanatan Dharma ? 33 crore or 33 types ?
सनातन धर्म में कितने देवी-देवता हैं ? 33 कोटि(crore) या 33 कोटि(types) ? ----------------------------------------- (@Hindu will provide an explanation on the next post.)Anonymous voting
- 33 कोटि - 33 types
- 33 कोटि - 33 Crore (करोड़)
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🕉️ कारणोदक्षायी विष्णु
जो उस कारण सागर में योग निंद्रा में सो रहे है, जिसमें अनंत ब्रह्मांड ऐसे तैर रहे हैं, जैसे समुद्र में बुलबुले ।
जब वे साँस छोड़ते हैं तो वे ब्रह्मांड उनके शरीर के छिद्रों से निकलते हैं और उनके साँस लेते ही वे नष्ट होकर पुनः उनके शरीर में समा जाते हैं।
कारण सागर एक ही है, अतः कारणोदक्षायी विष्णु भी मात्र एक ही है।
और क्यूँकि वे अनंत ब्रह्मांडों, यानी की समस्त भौतिक जगत की उत्पत्ति के अंतिम कारण स्वरूप है, उन्हें कारणो के कारणकार, कारणोदक्षायी विष्णु के नाम से जाना जाता है।
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Which Lord Vishnu is the biggest in the terms of cosmic significance ?
कौन से भगवान विष्णु सबसे बड़े या सबसे व्यापक माने जाते है, क्योंकि वह सभी अस्तित्व का अंतिम स्रोत है और अन्य विष्णु रूपों की तुलना में ब्रह्मांडीय महत्व में उनसे परे है।Anonymous voting
- करणोदक्षायी विष्णु - Karanodakshayi Vishnu
- गर्भोदक्षायी विष्णु - Garbhodakshayi Vishnu
- क्षीरोदक्षायी विष्णु - Kshirodakshayi Vishnu
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Which Lord Vishnu is the biggest in the terms of cosmic significance ?
कौन से भगवान विष्णु सबसे बड़े या सबसे व्यापक माने जाते है, क्योंकि वह सभी अस्तित्व का अंतिम स्रोत है और अन्य विष्णु रूपों की तुलना में ब्रह्मांडीय महत्व में उनसे परे है।Anonymous voting
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Who was the most powerful warrior in Kurukshetra War ?
कुरूक्षेत्र युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धा कौन था ?Anonymous voting
- Karna - कर्ण
- Bhisma Pitamah - भीष्म पितामह
- Arjun - अर्जुन
- Eklavya - एकलव्य
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