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Ayurved Hindi (आयुर्वेद हिंदी )

Ayurved Hindi : all about Ayurved in Hindi https://ayurved-hindi.com/ayurvedic-remedies-in-hindi/ आयुर्वेद , घरेलु नुस्खे , हिंदी भाषा में

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🔸बोलते हैं कि संध्या होती है तो दैत्य-राक्षस हमला करते हैं इसलिए शंख , घंट बजाना चाहिए, कपूर जलाना चाहिए, आरती-पूजा करनी चाहिए अर्थात संध्या के समय और सुबह के समय वातावरण में विशिष्ट एवं विभिन्न प्रकार के जीवाणु होते हैं जो श्वासोच्छवास के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करके हमारी जीवनरक्षक जीवनरक्षक कोशिकाओं से लड़ते हैं । तो देव-असुर संग्राम होता है, देव माने सात्त्विक कण और असुर माने तामसी कण । कपूर की सुगंधि से हानिकारक जीवाणु एवं विषाण रूपी राक्षस भाग जाते हैं ।* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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पितृपक्ष_जानकारी_एवं_उपाय_pdf.pdf7.55 MB
*🔹गिलोय के उपयोग :🔹* *🔸गिलोय के रस पीने से मलेरिया तथा पुराना बुखार में लाभ होता है  ।* *🔸चुटकी भर दालचीनी व लौंग के साथ लेने से मुद्दती बुखार दूर होता है । *🔸बुखार के बाद रहने रहनेवाली कमजोरी में गिलोय का रस पौष्टिक एवं शक्तिप्रदायक है । *🔸गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर पिने से पीलिया में लाभ होता है ।* *🔸गिलोय का रस दीर्घकाल तक लेते रहने से कायमी कब्जी के रोगी को लाभ होता है ।* *🔸गिलोय के चूर्ण अथवा रस का नियमित उपयोग डायबिटीजवालों के लिए लाभदायी है । *🔸गिलोय उत्कृष्ट मेध्य अर्थात बुद्धिवर्धक रसायन है । इसके नियमित सेवन से दीर्घायुष्य, चिरयौवन व कुशाग्र बुद्धि कि प्राप्ति होती है ।* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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🔹औषधीय गुणों से परिपूर्ण : पारिजात🔹* *🔸पारिजात या हरसिंगार को देवलोक का वृक्ष कहा जाता है । कहते हैं कि समुद्र – मंथन के समय विभिन्न रत्नों के साथ – साथ यह वृक्ष भी प्रकट हुआ था । इसकी छाया में विश्राम करनेवाले का बुद्धिबल बढ़ता है । यह वृक्ष नकारात्मक ऊर्जा को भी हटाता है । इसके फूल अत्यंत सुकुमार व सुगंधित होते हैं जो दिमाग को शीतलता व शक्ति प्रदान करते हैं । हो सकते तो अपने घर के आसपास इस उपयोगी वृक्ष को लगाना चाहिए ।* *🔸पारिजात ज्वर व कृमि नाशक, खाँसी – कफ को दूर करनेवाला, यकृत की कार्यशीलता को बढ़ानेवाला, पेट साफ़ करनेवाला तथा संधिवात, गठिया व चर्मरोगों में लाभदायक है ।* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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*आधुनिक अनुसंधानों में पाया गया है कि-* *🔸पैदल चलने से संधिवात (arthritis) संबंधी दर्द कम हो जाता है । हर हफ्ते ५-६ मील (८-१० कि.मी.) तक पैदल चलने से संधिवात की बीमारी होने से भी बचा जा सकता है ।* *🔸 जैसे-जैसे पैदल चलना बढ़ता जाता है । वैसे-वैसे कोरोनरी हृदयरोगों (हृदय की गति से भ्रमण करना अधिकांश व्यक्तियों के लिए रक्तवाहिनियों में अवरोध) के होने का जोखिम कम होता जाता है । आम जनता में कोरोनरी हृदयरोगों की रोकथाम के लिए भ्रमण को एक आदर्श व्यायाम के रूप में बढ़ावा देना चाहिए ।* *🔸पैदल चलने से व्यक्ति की रचनात्मकता में औसतन ६० प्रतिशत तक की वृद्धि होती है ।* *🔸भ्रमण उच्च रक्तचाप (hypertension) व टाइप-2 डायबिटीज होने के जोखिम को कम करता है ।* *🔹ध्यान रखें🔹* *🔸घास न हो तो नंगे पैर भ्रमण न करें । भ्रमण प्रदूषणरहित स्थान पर करें । यदि यह सुविधा न हो सके तो अपने घर की छत के ऊपर गमलों में तुलसी, मोगरा, गुलाब आदि लगाकर सुबह- शाम उनके आसपास पैदल चल सकते हैं ।* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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*🚶‍♂️शारीरिक-मानसिक आरोग्य हेतु संजीवनी बूटी : पैदल भ्रमण🚶‍♂️* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c *🔹कैसा भ्रमण है लाभदायी ?🔹* *🔸पैदल भ्रमण करते समय शरीर सीधा व वस्त्र कम रहें । दोनों हाथ हिलाते हुए और नाक से गहरे गहरे श्वास लेते हुए भ्रमण करना चाहिए । गहरे श्वास लेने से प्राणायाम का भी लाभ मिलता है ।* *🔸शारीरिक के साथ यह मानसिक स्वास्थ्य में भी लाभदायी है । इससे काम, क्रोध, ईर्ष्या आदि मनोदोषों का शमन होता है । एकाग्रता विकसित होती है ।* *🔸ओस की बूँदों से युक्त हरी घास पर टहलना अधिक हितकारी हैं । यह नेत्रों के लिए विशेष लाभकारी है । वर्षा के दिनों में भीगी घास पर टहल सकते हैं ।* *🔸भ्रमण सामान्यरूप से शारिरिक क्षमता के अनुसार मध्यम गति से ही करें । सुश्रुत संहिता (चिकित्सा स्थान : २४.८०) में आता है : यत्तु चङ्क्रमणं नातिदेहपीडाकरं भवेत् । तदायुर्बलमेधाग्निप्रदमिन्द्रियबोधनम् ॥* *🔸'जो भ्रमण शरीर को अत्यधिक कष्ट नहीं देता वह आयु, बल एवं मेधा प्रदान करनेवाला होता है, जठराग्नि को बढ़ाता है और इन्द्रियों की शक्ति को जागृत करता है ।'*
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*🔹आहार द्वारा वायु को संतुलित कैसे रखें ?🔹* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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*🔹अपनी प्रकृति अनुसार करें आहार सेवन🔹* *🔸मानवीय प्रकृति में जिस दोष की प्रधानता होती है उसके प्रकोपजन्य व्याधियाँ होने की सम्भावना अधिक होती है । इनसे रक्षा के लिए आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक कहते हैं :* *विपरीत गुणस्तेषां स्वस्थवृत्तेर्विधिर्हितः ।* *🔸प्रकृति के विरुद्ध गुण का सेवन ही स्वास्थ्यवर्धक होता है । (च. सं., सूत्रस्थान ७.४१) इसलिए अपनी प्रकृति का निश्चय कर उसके अनुसार आहार-विहार का सेवन करना चाहिए ।* *🔸सभी आहार द्रव्यों का लाभ प्राप्त करने हेतु पदार्थ जिस दोष को बढ़ाता है उसके शमनकारी पदार्थों का युक्तिपूर्वक संयोग कर सेवन करना हितकर है । जैसे- पालक वायुवर्धक है तो उसके साथ में वायुशामक सोआ डाला जाता है, अदरक, लहसुन, काली मिर्च, हींग आदि द्रव्यों के उपयोग से दालों व सब्जियों के तथा तेल, घी, नमक के द्वारा जौ, मकई आदि अनाजों के वायुवर्धक गुण का शमन किया जाता है ।* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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दस वर्ष के बाद बचपन समाप्त होता है, बीस वर्ष के बाद वृद्धि रुक जाती है, तीस वर्ष के बाद कान्ति कम होती है । चालीस वर्ष के बाद स्मरण शक्ति कम होती है । पचास वर्ष के बाद चमड़ी की स्निग्धता कम होती है, साठ वर्ष के बाद नेत्र की शक्ति कम होती है, सत्तर वर्ष के बाद वीर्य कम होता है, अस्सी वर्ष के बाद पराक्रम में कमी होती है । नव्वे वर्ष के बाद बुद्धि कम होती है, सौ वर्ष होने पर कर्मेन्द्रियों की शक्ति कम होती है । एक सौ दस वर्ष के बाद चेतना कम होती है और एक सौ बीस वर्ष के बाद जीवन कम होता है ।* ‎Follow the Ayurved_Hindi आयुर्वेद हिंदी channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaHJBL3JJhzc93TTSW2c
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